Sunday 2 January, 2011

गीत



          आजकल की  गीत रचना फूहड़पन के साथ फिल्मो के दृष्टिकोण से 
लिखीं  जा रहीं हैं| गीतों में प्राचीनतम भाव भंगिमाएं 'न' के बराबर हैं|  
         गीतों  में सरलता होते हुए भी  मर्मस्पर्शी तरलता मृतप्राय है | 
 इस प्रकार के गीत मानवीय संस्कृति के अनुकूल नहीं हो पा रहें हैं | 


                 गीत जीवन को खुशी का '
                         बिम्ब बन साकार करते ;
                              ब्याप्त अंतस में ब्यथा पर '
                                      आंसुओं की धार बनते |


                बिरह की  गजगामिनी को '
                           प्रकृति तक भाती नहीं ;
                                   वे गीत सुर में गुनगुनाती '
                                               धार ढुलकाती रहीं |


        अंत:स्पर्शी गीत मन अथवा आत्मा में निहित खुशियाँ प्रकाशित करते हुए दर्पण पर बिम्ब उकेर देते हैं | मन में उपजे बिरवे यदि पत्थर जैसे कठोर व्यथा से पीड़ित हैं तो ब्यथा आसुओं की धार बनकर बहने लगती है  |  बिरहिनी को सांसारिक सौन्दर्य तक अच्छा नही लगता | उनके गीतों के  सुरों में आसुओं की धारा ही ढुलकती रहती है|

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