Viplav- Vibha
Vipab-vibha is a collection of different types of poems expressing special feature of nature in stanzas.
Monday, 10 January 2011
WORSHIP
We've already heard in pious ethic in Geeta spoken by lord Krisna at the time of the battle at Kuruchhetra in Mahabharat that the "Karma hee Puja hai". Such as we should alway try to do our duties then after hope about result. God is the second name of Karma. We should not forget if we are continue failing, there may be a miner mistake,which is not apart of real worship or a cause of wrong channel of our worship. A flower is less than completing Pooja .
Failing to result or worship of the almighty is the same.
HARINAMSINGH YADAV
Sunday, 2 January 2011
गीत
आजकल की गीत रचना फूहड़पन के साथ फिल्मो के दृष्टिकोण से
लिखीं जा रहीं हैं| गीतों में प्राचीनतम भाव भंगिमाएं 'न' के बराबर हैं|
गीतों में सरलता होते हुए भी मर्मस्पर्शी तरलता मृतप्राय है |
इस प्रकार के गीत मानवीय संस्कृति के अनुकूल नहीं हो पा रहें हैं |
गीत जीवन को खुशी का '
बिम्ब बन साकार करते ;
ब्याप्त अंतस में ब्यथा पर '
आंसुओं की धार बनते |
बिरह की गजगामिनी को '
प्रकृति तक भाती नहीं ;
वे गीत सुर में गुनगुनाती '
धार ढुलकाती रहीं |
अंत:स्पर्शी गीत मन अथवा आत्मा में निहित खुशियाँ प्रकाशित करते हुए दर्पण पर बिम्ब उकेर देते हैं | मन में उपजे बिरवे यदि पत्थर जैसे कठोर व्यथा से पीड़ित हैं तो ब्यथा आसुओं की धार बनकर बहने लगती है | बिरहिनी को सांसारिक सौन्दर्य तक अच्छा नही लगता | उनके गीतों के सुरों में आसुओं की धारा ही ढुलकती रहती है|
गीत जीवन को खुशी का '
बिम्ब बन साकार करते ;
ब्याप्त अंतस में ब्यथा पर '
आंसुओं की धार बनते |
बिरह की गजगामिनी को '
प्रकृति तक भाती नहीं ;
वे गीत सुर में गुनगुनाती '
धार ढुलकाती रहीं |
अंत:स्पर्शी गीत मन अथवा आत्मा में निहित खुशियाँ प्रकाशित करते हुए दर्पण पर बिम्ब उकेर देते हैं | मन में उपजे बिरवे यदि पत्थर जैसे कठोर व्यथा से पीड़ित हैं तो ब्यथा आसुओं की धार बनकर बहने लगती है | बिरहिनी को सांसारिक सौन्दर्य तक अच्छा नही लगता | उनके गीतों के सुरों में आसुओं की धारा ही ढुलकती रहती है|
Friday, 24 December 2010
चादर
पलनों पर पुलकित चादर है .'
पर नहीं कन्हैया गीता का
जब बनबासी श्री राम नहीं '
तब प्रश्न नही सीता का |
जब जहाँगीर में न्याय नहीं '
झोपड़ियाँ निशिदिन जला करें
दानव दहेज की होली में
क्योँ अबला यौवन भला करें |
ललकार तुम्हारे पौरुष की क्या
दूर क्षितिज तक फैली है ?
हिमगिरी सागर तक की चादर
तुम देंखो भी क्यों मैली है ?
बस एक सत्य प्रतिबिंबित है,
प्रतिपल करणों में झंकृत है,
है, मौन खड़ा चौराहों पर,
पर आर्द्र-घोष से विकृत है;
नवल चादरें तान सावले,
बसुधा पर भूचालों सा-
ज्योतिर्मय दीपक जल जाएँ
चिर-अखण्ड मतवालों का |
Summery - A CLOTH SHEET
Cloth sheet spread on cradle
But there is absent child God
Krishna of holy ethic Geeta'
If Shri Ram is not able to live
in forest, no question stand to
sacrifice princes Seeta.
If there is no judgment in court of
famous Mughal emperor Jahangir
such as huts will burn always daily.
similarly as women cruelty will be
continued in modern system dowry .
May I ask that, why challenges of
your personality may still continued
and extend up to the horizon ?
See the sheet of humanity is still dirty
from Himalayas to Indian ocean....
झोपड़ियाँ निशिदिन जला करें
दानव दहेज की होली में
क्योँ अबला यौवन भला करें |
ललकार तुम्हारे पौरुष की क्या
दूर क्षितिज तक फैली है ?
हिमगिरी सागर तक की चादर
तुम देंखो भी क्यों मैली है ?
बस एक सत्य प्रतिबिंबित है,
प्रतिपल करणों में झंकृत है,
है, मौन खड़ा चौराहों पर,
पर आर्द्र-घोष से विकृत है;
नवल चादरें तान सावले,
बसुधा पर भूचालों सा-
ज्योतिर्मय दीपक जल जाएँ
चिर-अखण्ड मतवालों का |
Summery - A CLOTH SHEET
Cloth sheet spread on cradle
But there is absent child God
Krishna of holy ethic Geeta'
If Shri Ram is not able to live
in forest, no question stand to
sacrifice princes Seeta.
If there is no judgment in court of
famous Mughal emperor Jahangir
such as huts will burn always daily.
similarly as women cruelty will be
continued in modern system dowry .
May I ask that, why challenges of
your personality may still continued
and extend up to the horizon ?
See the sheet of humanity is still dirty
from Himalayas to Indian ocean....
It is reflected around imaginary true
everywhere in every moment.
In our ears too, standing to express silently
on crossway harassed by bitterly lament.
Oh! my beloved countrymen
spread a newly light sheet covering
to whole of our motherland,
whether a lighting lamp is fighting
with wisdom will continue shining.
By- HARINAMSINGH YADAV
Wednesday, 15 December 2010
Welcome
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