आजकल की गीत रचना फूहड़पन के साथ फिल्मो के दृष्टिकोण से
लिखीं जा रहीं हैं| गीतों में प्राचीनतम भाव भंगिमाएं 'न' के बराबर हैं|
गीतों में सरलता होते हुए भी मर्मस्पर्शी तरलता मृतप्राय है |
इस प्रकार के गीत मानवीय संस्कृति के अनुकूल नहीं हो पा रहें हैं |
गीत जीवन को खुशी का '
बिम्ब बन साकार करते ;
ब्याप्त अंतस में ब्यथा पर '
आंसुओं की धार बनते |
बिरह की गजगामिनी को '
प्रकृति तक भाती नहीं ;
वे गीत सुर में गुनगुनाती '
धार ढुलकाती रहीं |
अंत:स्पर्शी गीत मन अथवा आत्मा में निहित खुशियाँ प्रकाशित करते हुए दर्पण पर बिम्ब उकेर देते हैं | मन में उपजे बिरवे यदि पत्थर जैसे कठोर व्यथा से पीड़ित हैं तो ब्यथा आसुओं की धार बनकर बहने लगती है | बिरहिनी को सांसारिक सौन्दर्य तक अच्छा नही लगता | उनके गीतों के सुरों में आसुओं की धारा ही ढुलकती रहती है|
गीत जीवन को खुशी का '
बिम्ब बन साकार करते ;
ब्याप्त अंतस में ब्यथा पर '
आंसुओं की धार बनते |
बिरह की गजगामिनी को '
प्रकृति तक भाती नहीं ;
वे गीत सुर में गुनगुनाती '
धार ढुलकाती रहीं |
अंत:स्पर्शी गीत मन अथवा आत्मा में निहित खुशियाँ प्रकाशित करते हुए दर्पण पर बिम्ब उकेर देते हैं | मन में उपजे बिरवे यदि पत्थर जैसे कठोर व्यथा से पीड़ित हैं तो ब्यथा आसुओं की धार बनकर बहने लगती है | बिरहिनी को सांसारिक सौन्दर्य तक अच्छा नही लगता | उनके गीतों के सुरों में आसुओं की धारा ही ढुलकती रहती है|
True for modern songs.............
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